रिपोर्ट@तुसार सिंह चंदेल
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में सोमवार को बाहुड़ा गोंचा का पर्व धूमधाम से मनाया गया। इसी के साथ गोंचा पर्व में चलने वाली भगवान जगरन्न्थ रथ यात्रा का सोमवार को समापन हुआ। बाहुड़ा गोंचा पर्व के दौरान तीन विशालकाय रथों पर सवार कर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र की भव्य रथयात्रा निकाली गई। इस भव्य रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी से सलामी दी गई। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पंहुचे।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व प्रदेश के वन मंत्री केदार कश्यप, तथा छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किरण देव, भारतीय जनता पार्टी के बस्तर लोकसभा सांसद महेश कश्यप व चित्रकोट भाजपा विधायक विनायक गोयल मुख्य रूप से उपस्थित थे। आपको यह भी बता दे कि भारी संख्या में भक्तों ने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए। चन्दन जात्रा से बस्तर में शुरू हुआ गोंचा पर्व अपनी भव्यता के साथ बाहुड़ा गोंचा के बाद अपनी परिपूर्णता की ओर बढ़ रहा है. बड़ी संख्या में लोग भगवान जगन्नाथ के इस गोंचा पर्व में आशीर्वाद लेने पहुंचे। 360 अरण्य ब्राम्हण समाज पूरे क्षेत्र की सुख शांति और समृद्धि की कामना करता है। जानकारी के मुताबिक यह गोंचा पर्व मनाने का सिलसिला सालों से चला आ रहा है। इस कार्यक्रम में हर्षोल्लास के साथ भीड़ उमड़ती है। धार्मिक आयोजन के चलते शहर में अच्छा माहौल बना रहता है। उत्साह के साथ रथ यात्रा और गोंचा पर्व को लोग निभाते हैं। बस्तर को शांत रखने के लिए बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी से कामना भी की गई है। साल का पहले त्योहार के रूप में इसे मनाया जाता है।
आपको बस्तर का एक और अनोखी परंपरा का परिभाषा बता दे कि छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग खूबसूरत वादियों, जलप्रपात, दिचलस्प गुफाओं, नैसर्गिक सुंदरताओं के लिए जाना जाता है. इसके अलावा 75 दिनों तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा भी मनाया जाता है, जिसमें कई अनोखी परम्परा निभाई जाती है. बस्तर में दूसरा सबसे अधिक दिनों तक चलने वाला पर्व गोंचा है। इस पर्व में भी कई अनोखी रस्में निभाई जाती है। बस्तर के गोंचा पर्व में दोस्ती या मीत बनाने की भी परंपरा है। मीत बनाने से पहले रिक्वेस्ट या आमंत्रण भेजा जाता है। इसके लिए भगवान को साक्षी मानकर दो लोगों में गजा मूंग, धान की बाली, चंपा फूल, भोजली और कमल के फूल आदान-प्रदान होता है। इसके बाद उनकी दोस्ती पक्की हो जाती है।
बस्तर में दोस्ती निभाने की यह अनूठी रस्म है। यह पंरपरा गोंचा पर्व के दौरान निभाई जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि इस रस्म के बाद लोगों की दोस्ती पक्की हो जाती है। अंतिम दिन मतलब सोमवार को भारी जन सलौब। आपको बता दे कि भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 9 दिनों तक जनकपुरी सिरहसार में विराजने के बाद सोमवार को विशालकाय रथों पर सवार होकर दर्शनार्थियों को दर्शन दिए। इसके बाद मंदिर पहुंचकर देवी लक्ष्मी से भगवान मेल-मिलाप करेंगे। इस रस्म के बाद 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी रस्म निभाया जाएगा।